एक बार की बात है, दूर पहाड़ों के किनारे एक छोटा सा गांव था। उस गांव में एक लड़का रहता था जिसका नाम गोपाल था। गोपाल बहुत ही जिज्ञासु और मेहनती था। एक दिन, उसके दादा जी ने उसे एक रहस्यमयी कहानी सुनाई कि गांव के पीछे एक जादुई पेड़ है, जिसके पत्ते चांदी के होते हैं। पर वह पेड़ किसी को आसानी से नहीं दिखता, और जो भी उसे ढूंढ़ता है, उसे पेड़ एक कठिन परीक्षा में डालता है।
गोपाल की उत्सुकता बढ़ गई और उसने सोचा कि वह इस जादुई पेड़ को ढूंढ़ेगा। अगले दिन सुबह-सुबह, वह अपनी यात्रा पर निकल पड़ा। पहाड़ों के बीच घने जंगलों में चलते हुए गोपाल को कई जानवर मिले, पर वह बिना डरे अपनी मंजिल की ओर बढ़ता रहा।
घने जंगल के बीच एक बूढ़ा आदमी बैठा था, जिसके हाथ में एक लकड़ी की छड़ी थी। वह बूढ़ा गोपाल को देखकर मुस्कुराया और बोला, “तुम यहां क्यों आए हो, बालक?”
गोपाल ने उत्सुकता से कहा, “मैं उस जादुई पेड़ को ढूंढ़ रहा हूँ जिसके पत्ते चांदी के होते हैं। क्या आप मुझे उसकी दिशा बता सकते हैं?”
बूढ़ा आदमी थोड़ा हंसा और बोला, “वह पेड़ सिर्फ उन्हें ही मिलता है जो दूसरों की मदद करते हैं और अपने स्वार्थ को त्याग देते हैं। क्या तुम ऐसी परीक्षा के लिए तैयार हो?”
गोपाल ने निश्चयपूर्वक सिर हिलाया। बूढ़े आदमी ने कहा, “पहली परीक्षा है धैर्य की। यहां से कुछ दूरी पर एक नदी है, जिसमें एक गरीब आदमी का बहता हुआ सामान फंसा हुआ है। पहले उसे बचाओ।”
गोपाल दौड़कर नदी के किनारे पहुंचा और वहां एक आदमी को देखा जो मदद के लिए पुकार रहा था। बिना समय गंवाए, गोपाल ने नदी में छलांग लगाई और उसका सारा सामान सुरक्षित बाहर निकाल दिया। वह आदमी गोपाल को धन्यवाद कहकर चला गया।
अब बूढ़ा आदमी फिर से प्रकट हुआ और बोला, “तुमने पहली परीक्षा पास कर ली। अब दूसरी परीक्षा है, करुणा की। आगे एक बीमार हिरण पड़ा है, उसकी देखभाल करो।”
गोपाल आगे बढ़ा और एक घायल हिरण को देखा। उसने अपनी चादर फाड़कर उसके घाव पर पट्टी बांधी और कुछ देर उसके पास बैठा रहा। धीरे-धीरे हिरण ठीक हो गया और दौड़ते हुए जंगल में चला गया।
बूढ़ा फिर आया और मुस्कुराते हुए बोला, “अब आखिरी परीक्षा है। यह है त्याग की परीक्षा। उस पहाड़ी पर एक चमकता हुआ चांदी का पत्ता है। अगर तुम उसे अपने लिए तोड़ोगे तो जादुई पेड़ गायब हो जाएगा, लेकिन अगर तुम इसे बिना तोड़े छोड़ दोगे, तो पेड़ तुम्हें अपना सारा खजाना दे देगा। अब फैसला तुम्हारा है।”
गोपाल पहाड़ी के ऊपर पहुंचा और चांदी के पत्ते को देखा। वह बहुत सुंदर था, लेकिन गोपाल ने सोचा कि वह स्वार्थ नहीं करेगा और पत्ते को नहीं तोड़ेगा। वह पत्ता वहीँ छोड़कर वापस लौटने लगा।
तभी अचानक, उसके सामने जादुई पेड़ प्रकट हुआ। पेड़ ने एक मधुर आवाज़ में कहा, “तुमने परीक्षा पास कर ली है, गोपाल। मैं तुम्हें वह सब कुछ दूंगा जिसकी तुम्हें ज़रूरत है। तुमने अपनी बुद्धि, धैर्य और करुणा से साबित कर दिया कि तुम मेरे खजाने के योग्य हो।”
गोपाल को पेड़ ने ढेर सारी चांदी के सिक्के, फल, और ज्ञान का वरदान दिया। वह गांव लौट आया और उन चीजों से न केवल खुद की, बल्कि अपने गांव वालों की भी मदद की। अब गोपाल का नाम पूरे गांव में आदर के साथ लिया जाता था।
शिक्षा: स्वार्थ को त्यागकर अगर हम धैर्य, करुणा, और त्याग के साथ दूसरों की मदद करते हैं, तो हमें जीवन में सच्ची सफलता और संतोष मिलता है।